Monday, August 9, 2010

ख्वाब जरूरी है!!

किसी रात के साए में चल कर
सहर की देहली तक पहुँचने को
एक ख्वाब का आसरा जरूरी है!

अब मेरी इन मुन्तजिर आँखों को
इतनी तो इजाजत दे मुनसिब
के इस दौर-ए- अमल के एवज
एक ख्वाब तो यह भी बुन ही लें!

कुछ असासों का ही क़र्ज़ होगा
कुछ अरमां-ए-खुदगर्ज़ होगा
पर, इनके आँखों में पलने में
किसी को भला क्या गर्ज़ होगा?

यह ख्वाब बस मेरी आँखों को
सहर की देहली तक ला कर
सूरज की चमक से बहला कर
खुद अपनी नींद सो जायेंगे-
हम फिर बेख्वाब हो जायेंगे!
पर रात के साए में चल कर
सहर की देहली तक पहुँचने को,
एक ख्वाब तो फिर भी जरूरी है!

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